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अब्‍दुल्‍लाह बिन अब्दुल-मुत्तलिब Radi Allah Anho

Published on: 10-Jul-2023
अब्‍दुल्‍लाह बिन अब्दुल-मुत्तलिब
अब्‍दुल्‍लाह बिन अब्दुल-मुत्तलिब
जन्म:546 C.Eमृत्यु:570 C.E.पिता:अब्दुल-मुत्तलिबमां:फातिमा बिन्त अम्रजीवनसाथी:आमिना رضى الله عنهاवंशज:हज़रत मुहम्मद ﷺजनजाति:कुरैश के बनू हाशिमपेशा:व्यापारी

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Arshad Ali Jilani *

अब्‍दुल्‍लाह बिन अब्दुल-मुत्तलिब (عبدالله بن عبدالمطلب)Radi Allah Anho हज़रत पैगंबर Sallallah o Alaih Wasallam के पिता थे 1, उनके पिता अब्दुल-मुत्तलिब 2 बिन हाशिम कुरैश कबीले की एक शाखा बनू हाशिम के प्रमुख थे। उनकी माता का नाम फ़ातिमा बिन्त अम्र इब्न आइज़ इब्न इमरान बिन मखज़ूम इब्न याक़्ज़ा था, जो मूल रूप से कुरैश की एक शाखा बनू मख़ज़ूम से थीं। 3 अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho का जन्म 546 CE में हुआ और 34 साल की उम्र में उनके बेटे (हज़रत पैगंबर) के जन्म से कुछ महीने पहले 4 570 CE में उनका निधन हो गया था।, आमतौर पर कहा जाता है कि वह अपने सभी भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।, 5 हालाँकि, हमज़ा Radi Allah Anho, अब्बास Radi Allah Anho और सफ़िया Radi Allah Anha, जो हाला से पैदा हुए थे, वे अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho से छोटे थे। 6 लेकिन अगर बात फातिमा बिन्त अम्र के बच्चों तक ही सीमित रहे तो उनकी संतान में अब्दुल्लाह Radi Allah Anho सबसे छोटे बेटे थे। 7

“अब्‍दुल्‍लाह” Radi Allah Anho अल्लाह तआला के प्यारे नामों में से एक है 8 जिसका शाब्दिक अर्थ होता है "अल्लाह का बन्दा" 9 अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho के पांच सगे भाई-बहन थे, जिनमें जुबैर, अब्दे मनाफ़ (जिन्हे आमतौर पर अबू तालिब के नाम से जाना जाता है), अतीका, बर्रह और उमेमा शामिल थे। 10 हालाँकि, अब्दुल-मुत्तलिब के बेटों में, वह सबसे खूबसूरत, सबसे पवित्र और तेजस्‍वी थे 11 और अपने पिता के सबसे प्रिय थे। 12

बलिदान (कुर्बानी) के लिए अब्दुल्लाह Radi Allah Anho को चुना गया।

इब्न इस्‍हाक के अनुसार, ज़मज़म का कुआँ खोदते समय, अब्‍दुल-मुत्‍तलिब को एहसास हुआ कि उनके काम में मदद करने के लिए उनका केवल एक बेटा (हारिस) है।, 13 इसलिए उन्‍हों ने अल्लाह से प्रार्थना की कि उन्‍हें और बेटे प्रदान करे और उन्‍होंने मन्‍नत की कि यदि मेरे दस बेटे होंगे, तो मैं उनमें से एक को अल्लाह की खातिर काबा में कुर्बान कर दूंगा। 14 उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली गई और सर्वशक्तिमान अल्‍लाह ने उन्हें दस बेटे दिये जो उनकी रक्षा और मदद कर सकते थे। एक दिन, उन्‍होंने उन सभी को इकट्ठा किया और उन्हें अपनी मिन्‍नत के बारे में बताया और उनसे कहा कि वे खुदा पर ईमान रखें । वे सभी उनकी मन्नत पूरी करने के लिए तैयार हो गए और उनसे पूछा कि अब क्या करना है। अब्दुल-मुत्तलिब उन्हें काबा शरीफ के अंदर ले गए और उनमें से हर एक से कहा कि वे एक तीर ले और उस पर अपना नाम लिखे और उसे उनके पास लेकर आए ताकि वह किसी भविष्‍यवक्‍ता धर्मगुरू से परामर्श कर सकें कि किस की बलि दी जाए।. 15

उस समय अरबों में भविष्यवाणी या इल्‍हाम के माध्यम से किसी जटिल और अबूझ समस्या का फैसला करना आम बात थी। वे हरम में रखी सबसे बड़ी मूर्ति के पैरों पर तीर चलाकर अनसुलझे मुद्दों का फैसला करते थे। 16 जैसे वे किसी लड़के का खतना करना चाहते, या किसी महिला से शादी करना चाहते, या किसी शव को दफनाना चाहते, या यदि उन्हें किसी व्यक्ति के माता-पिता पर संदेह होता था, तो वे उस व्यक्ति को हुबल के पास ले जाते, 17 फिर तीरों के संरक्षक के पास जाते थे। ईश्वर द्वारा दी गई इस सलाह के शुल्क के रूप में उनसे सौ दिरहम वसूले जाते थे। 18 इस्लाम के आगमन के बाद पवित्र कुरआन ने इस प्रथा को शैतानी काम घोषित किया और इस पर रोक लगा दी, 19 लेकिन उससे पहले यह एक सामाजिक रूप से स्वीकृत प्रथा थी।

अब्दुल-मुत्तलिब ने तीरों के आधिकारिक संरक्षक को अपनी मिन्‍नत के बारे में बताया और उससे अपने बेटों के तीर चलाने और उनके भाग्य का फैसला करने को कहा। हर बेटे ने अपनी तीर पर अपना नाम लिखकर सौंपा। तीर ने अब्दुल्ला Radi Allah Anho का नाम सुझाया। 20 इसलिए, बिना किसी हिचकिचाहट के, अब्दुल-मुत्तलिब ने एक बड़ा चाकू उठाया, अब्दुल्ला Radi Allah Anho को हाथ से पकड़ा और उस स्थान पर चले गए जहाँ अब्दुल्ला Radi Allah Anho की बलि दी जानी थी। 21 अब्दुल्ला को यह जानते हुए भी कि उसे बलि के लिए चढ़ाया जाएगा, उसने कोई हिचक नहीं दिखाई। यह उसके पिता के प्रति आज्ञाकारिता और अल्लाह के मार्ग में अपनी जान की बलि देने की तत्परता को दर्शाता है।

जब कुरैश के लोगों ने देखा कि अब्दुल-मुत्तलिब अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho की बलि देने वाले हैं, तो वे अब्दुल- मुत्तलिब के पास गए और उनसे अनुरोध किया कि वे अपने बेटे को कुर्बान न करें और इसके बजाय कोई अन्य समाधान खोजें। अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho के ननिहाल की ओर से मुगीरा बिन अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho अल-मखज़ूमी ने ज़ोर देकर कहा कि अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho को रिहा किया जाए और किसी प्रकार की माफी मांगी ली जाएा कुरैश कबीले के अन्य लोग और अब्दुल-मुत्तलिब के घर वाले जोर देते रहे यहां तक कि अब्दुल-मुत्तलिब ने उनसे पूछा कि अपने बेटे की बलि देने के बजाय ईश्‍वर को खुश करने के लिए क्या किया जाना चाहिए, मुगीरा इब्न अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho अल-मखज़ूमी ने उसे अपने बेटे को धन से फिरौती देने की सलाह दी। उसने स्वयं अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho के लिए सबसे बड़ी फिरौती देने की पेशकश की और घोषणा की कि वह फिरौती की रकम के रूप में अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho को बचाने के लिए अपने पूरे कबीले के साथ सभी आवश्यक धन का त्याग कर देगा 22

कुरैश कबीले के लोगों ने सुझाव दिया कि अब्दुल-मुत्तलिब अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho को यस्रिब में एक बुद्धिमान जादूगरनी के पास ले जाएं, जिसका किसी परिचित आत्‍मा के साथ संपर्क था, ताकि वह उसे बेहतर सलाह दे सके। वह इस बात पर भी सहमत थे कि यदि यह आध्यात्मिक महिला उन्हें अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho की बलि देने की सलाह देती है, तो फिर वे अब्दुल-मुत्तलिब को ऐसा करने से नहीं रोकेंगे। यदि वह कुछ और सुझाव देती है, तो यह सभी के लिए राहत की बात होगी। अब्दुल-मुत्तलिब ने उनकी राय मान ली और वह यस्रिब के लिए रवाना हो गये। जब वे उसके स्थान पर पहुँचे तो उन्होंने पाया कि जादूगरनी वहाँ नहीं है बल्कि खैबर चली गई है। 23 जो यस्रिब से लगभग सौ मील उत्तर में एक उत्पादक घाटी में एक समृद्ध यहूदी कस्‍बा था। 24 उन्होंने अपनी यात्रा जारी रखी और खैबर पहुँचे जहाँ अब्दुल-मुत्तलिब ने उस महिला से मुलाकात की और उसे मामले की पूरी जानकारी दी। उसने उन सभी को आदेश दिया कि वे चले जाएं और उस समय तक इन्‍तेजार करें जबतक कि वह परिचित आत्‍मा उसके पास न आ जाए ताकि वह उससे पूछ सके और उस मामले में उन्‍हें कुछ व्यावहारिक सुझाव दे सके। अब्दुल-मुत्तलिब ने उस रात का अधिकांश समय अल्लाह की इबादत में बिताया। अगले दिन, वे फिर उससे मिलने गए और महिला ने उनसे पूछा कि वह मुआवज़ा के रूप में कितना भुगतान करने को तैयार हैं? उन्‍होंने कहा कि दस ऊँट हैं। उसने उन्हें मक्का लौटने की सलाह दी और उनसे कहा कि वे दस ऊंटों और अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho के नाम पर चिट्ठी (Cleromancy) 25 (भाग्य पत्रक प्राक्ख्यापन)]डालें। यदि चिट्ठी अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho के नाम निकलती है तो वे उसमें और ऊँट जोड़ते जाएं जब तक कि चिट्ठी ऊँटों के नाम नहीं निकल जाए। एक बार जब चिट्ठी ऊँटों के नाम निकल जाए, तो उसके बदले एकत्रित ऊँटों की कुल संख्या की बलि देनी होगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यही एकमात्र तरीका है जिससे खुदा प्रसन्न होगा और अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho की जान बचायी जा सकेगी। 26

अब्दुल-मुत्तलिब मक्का वापस लौट आए और उन निर्देशों का पालन करने का फैसला किया। उनके बेटों ने चिट्ठी डालने की प्रक्रिया शुरू कर दी, जबकि अब्दुल-मुत्तलिब ने अल्लाह से प्रार्थना की। फिर वह अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho के पास चिट्ठी निकालने के लिए दस ऊँट लाए और तीर अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho के नाम गिरा। अत: उन्होंने दस ऊँट और जोड़ दिये, परन्तु चिट्ठी फिर अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho के नाम निकली, और वे हर बार दस ऊँट और जोड़ते गए, यहाँ तक कि सौ ऊँट हो गए। आख़िरकार चिट्ठी ऊँटों के नाम निकल गई। 27 कुरैश के लोग और श्रोता-गण अब्दुल-मुत्तलिब को बताए कि अब उनके साथ भगवान प्रसन्न हो गए हैं। लेकिन उन्होंने उत्तर दिया, जब तक मैं तीन बार चिट्ठी नहीं डालता, तब तक नहीं। तीन बार किया गया और प्रति बार तीर ऊँटों के खिलाफ गिरा। 28 अब्दुल- मुत्तलिब ने सफ़ा और मारवह के बीच ऊँटों का वध किया और लोगों के लिए दावत की व्यवस्था की, लेकिन न तो उन्होंने और न ही उनके बेटों ने उसमें से कुछ खाया। उस दिन तक दियत (मुआवज़ा/फिरौती) की कीमत दस ऊँट थी, लेकिन अब्दुल-मुत्तलिब ने एक मानव जीवन के बदले में इसे बढ़ाकर सौ ऊँट तक पहुंचा दिया। क़ुरैश के लोगों के साथ-साथ अन्य सभी अरबों ने भी इसे स्वीकार कर लिया और इस्लाम के बाद, हज़रत पैगंबर Sallallah o Alaih Wasallam ने भी इसकी पुष्टि की। 29

हज़रत पैगंबर Sallallah o Alaih Wasallam को इब्नुज्‍ज़बीहैन (दो वध करने वालों का पुत्र) कहा जाता है। इस उपाधि का कारण यह है कि उनके पिता अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho और उनके परदादा हज़रत इस्माइल को कुर्बानी के लिए पेश किया गया था। लेकिन अल्लाह तआला ने हज़रत इस्माइल और अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho दोनों को बचा लिया। 30

अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho के लिए विवाह प्रस्ताव

अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho एक आकर्षक युवक थे, जिन्‍हें मक्का की महिलाएँ बहुत पसंद करती थीं। वे उनके बदले सैकड़ों ऊँटों की बलि देने की उस घटना से वह बहुत प्रभावित हुई थीं और उनसें विवाह करना चाहती थीं। 31 रिवायत है कि अब्दुल्लाह Radi Allah Anho का माथा इतना चमकदार था कि ऐसा लगता था मानो उससे प्रकाश की किरणें निकल रही हो। यह इस बात का संकेत था कि उनकी पीढ़ी में कोई नबी है। यह भी एक कारण था कि कई महिलाएं उनसे शादी करना चाहती थीं और कुछ ने उनके पास प्रस्‍ताव भी भेजा था। उनमें से एक बनू असद कबीले के उम्मे किताल बिन्त नौफल थीं। कहा जाता है कि उन्‍होंने अपने भाई वरका बिन नौफल से, जो ईसाई धर्म और प्राचीन धर्मग्रंथों के विद्वान थे, अरब में पैगंबर Sallallah o Alaih Wasallam के प्रकट होने के संकेतों के बारे में सुना था, इसलिए वह चाहती थीं कि पैगंबर Sallallah o Alaih Wasallam का जन्‍म उनके यहां हो। 32

यह वर्णन किया गया है कि कुर्बानी और फिरौती की घटना के बाद अब्दुल्लाह Radi Allah Anho अपने पिता अब्दुल-मुत्तलिब के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में उनकी मुलाकात उम्मे क़िताल से हुई, 33 उसने अब्दुल्लाह Radi Allah Anho से बात की और उससे शादी के लिए कहा, और उसके बदले में उसे उतने ऊंट देने का प्रस्ताव किया जितने उसकी कुर्बानी के लिए बलिदान किए गए थे, अब्दुल्लाह ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा कि वह उसी लड़की से शादी करेगा जिसे उसके पिता ने सुझाया है। 34 यह घटना अब्दुल्लाह की अपने पिता के प्रति पूरी तरह से आज्ञाकारिता और सम्मान के साथ-साथ सांसारिक इच्छाओं के प्रति उसकी उदासीनता को दर्शाती है।

फातिमा बिंट मुर्र के लिए भी एक समान घटना का उल्लेख किया गया है, जो अरब की सबसे सुंदर महिलाओं में से एक थीं। उसने अब्दुल्लाह Radi Allah Anho से शादी के लिए प्रस्ताव दिया, लेकिन उसने इसे ठुकरा दिया। यह उसके पवित्रता, उच्चता, गरिमा और शीलता को दर्शाता है। 35 कहा जाता है कि जब उसकी शादी हुई, तो बanu मख़ज़ूम, बanu अब्द अल-शम्स और बanu अब्द अल-मुनाफ़ क़बीलों की कई युवतियाँ इस खबर की तीव्रता को सहन नहीं कर पाईं और कई दिनों तक बीमार रहीं। 36

आमिना Radi Allah Anha से विवाह

यमन की एक घटना के बाद अब्दुल-मुत्तलिब अपने और अपने बेटे के लिए बनू ज़हरा कबीले से दुल्हन लाना चाहते थे। उनके इस दृढ़ संकल्प और इरादे का कारण अब्बास बिन अब्दुल-मुत्तलिब ने बताया है कि वह एक बार अपने पिता के साथ यमन में थे, जहां उनकी मुलाकात एक यहूदी विद्वान से हुई, जो धर्मग्रंथों का ज्ञाता था। उसने अब्दुल-मुत्तलिब की शक्ल-सूरत में कुछ निशानियाँ देखीं और पुष्टि की कि अब्दुल-मुत्तलिब के एक हाथ में सत्ता और सरकार है और दूसरे हाथ में पैग़म्बरी है, लेकिन ये दोनों गुण बनू ज़हरा कीबले में एकत्रित हो जाएंगे। फिर उसने पूछा कि क्या अब्दुल-मुत्तलिब ने बनू ज़हरा कबीले के साथ कोई संबंध स्थापित किया है या नहीं? अब्दुल-मुत्तलिब ने इनकार कर दिया, क्योंकि तब तक उनका उस कबीले से कोई संबंध नहीं था। अब्बास का कहना है कि उनके पिता ने इस बातचीत और भविष्यवाणी को ध्यान में रखा और अपनी और अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho की बनू जहरा कबीले की एक महिला से शादी करने का फैसला किया। 37 यही घटना अब्दुल्लाह Radi Allah Anho की बनू ज़हरा कबीले में शादी का कारण साबित हुई।

जब अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho चौबीस साल के थे, 38 तब अब्दुल-मुत्तलिब ने अपने बेटे की शादी के लिए ज़हरा कबीले के प्रमुख वहब बिन अब्दे मनाफ बिन ज़हरा की बेटी आमिना Radi Allah Anha को चुना। इसलिए उन्होंने अपने बेटे अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho की शादी के लिए आमिना Radi Allah Anha का हाथ मांगा। वह वंश और पद की दृष्टि से सबसे उत्कृष्ट महिला 39 थीं और 40 उस समय अपने कबीले की महिलाओं की प्रमुख थीं। 41 इस प्रकार, माता और पिता दोनों की ओर से, हज़रत मुहम्मद Sallallah o Alaih Wasallam अपनी वंशावली में सर्वोच्च और सबसे सम्माननीय थे। 42

इस विवाह प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया और अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho की आमिना Radi Allah Anha से शादी हो गई, जबकि उनके पिता अब्दुल-मुत्तलिब ने उसी दिन आमिना Radi Allah Anha की चचेरी बहन से शादी कर ली। अब्दुल-मुत्तलिब की इस शादी के कारण, हज़रत पैगंबर Sallallah o Alaih Wasallam के एक चाचा उनके ही उम्र के थे, जिनका नाम हमज़ा था। कबीले की रीति-रिवाजों के अनुसार, शादी के पहले तीन दिन अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho अपने रिश्तेदारों के बीच आमिना Radi Allah Anha के साथ रहे। 43 फिर वे अब्दुल-मुत्तलिब के घर चले गए।

कुछ इतिहासकारों ने अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho की आमिना Radi Allah Anha के अलावा अन्य महिलाओं से शादी के बारे में कई कहानियाँ लिखी हैं, लेकिन वे केवल कहानियाँ हैं जो सच नहीं हैं। 44 अल-वाकीदी का हवाला देते हुए, इमाम अल-सलेही कहते हैं कि अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho ने आमिना Radi Allah Anha के अलावा किसी भी महिला से कभी शादी नहीं की। 45

अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho का निधन

अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho कुरैश कबीले के एक व्यापारिक कारवां के साथ सीरिया में गाज़ा के लिए रवाना हुए। जब वह निकले तो उस समय आमिना Radi Allah Anha गर्भवती थी। वह कई महीनों तक गाज़ा में रहे और मक्का वापस लौटते समय अपने मामा बनू आदि बिन नज्जार के साथ यस्रिब (मदीना) में रुके। वहाँ रहने के दौरान वह बीमार पड़ गए और मक्का वापस नहीं लौट सके। जब कारवां मक्का पहुंचा, तो उनके पिता को अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho की अनुपस्थिति और बीमारी की जानकारी दी गई। अब्दुल-मुत्तलिब ने तुरंत अपने बड़े बेटे हारिस को यस्रिब (मदीना) भेजा, ताकि वह अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho की मक्का वापसी की यात्रा में मदद कर सके। जब हरिस यस्रिब पहुंचे तो उन्हें पता चला कि अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho का निधन हो गया है और उन्हें यस्रिब में दफना दिया गया है। इसलिए हरिस मक्का लौट आए और अपने बुजुर्ग पिता और विधवा पत्नी आमिना Radi Allah Anha को अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho के निधन के बारे में सूचित किया। यह खबर अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho के भाइयों और बहनों, अब्दुल-मुत्तलिब और सबसे महत्वपूर्ण अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho की पत्‍नि आमिना Radi Allah Anha के लिए एक बड़े सदमे का झटका थी। 4647

इब्ने साद ने वकीदी के हवाले से कहा कि उनकी उम्र के बारे में सबसे प्रामाणिक राय यह है कि जब उनका निधन हुआ तो वह केवल 25 वर्ष के थे। जब अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho इस दुनिया से गए, तो हज़रत पैगंबर Sallallah o Alaih Wasallam उस समय अपनी मां के पेट में थे । 48

अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho की विरासत

अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho ने अपने परिवार के लिए विरासत में पाँच ऊँट, बकरियों का एक झुंड और एक दासी छोड़ी जिसे उम्मे अयमन कहा जाता है। 49 इतनी संपत्ति से ऐसा नहीं लगता कि अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho बहुत अमीर और धनी व्यक्ति थे, लेकिन ऐसा भी नहीं लगता कि वह कोई गरीब, और ज़रूरतमंद आदमी थे। अब्‍दुल्‍लाह Radi Allah Anho अपने शुरुआती बीसवें वर्ष में थे, अभी भी एक युवा और प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, जो काम करने और अपना भाग्य बनाने में सक्षम थे। इसके अलावा, उनके पिता अभी भी जीवित थे और उनकी कोई भी संपत्ति अभी तक उनके बच्चों को हस्तांतरित नहीं की गई थी। 50


  • 1  Abd Al-Malik ibn Hisham (1955), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Hisham, Shirkah Maktabah wa Matba’ Mustafa Al-Babi, Cairo, Egypt, Vol. 1, Pg. 158.
  • 2  Muhammad ibn Jareer Al-Tabari (1387 A.H.), Tareekh Al-Tabari, Dar Al-Turath, Beirut, Lebanon, Vol. 2, Pg. 239.
  • 3  Abd Al-Malik ibn Hisham (1955), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Hisham, Shirkah Maktabah wa Matba’ Mustafa Al-Babi, Cairo, Egypt, Vol. 1, Pg. 109.
  • 4  Muhammad ibn Saad Al-Basri (1968), Tabqat Al-Kubra, Dar Sadir, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 99.
  • 5  Muhammad ibn Isḥaq ibn Yasar Al-Madani(1978), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Ishaq, Dar Al-Fikr, Beirut, Lebanon, Pg. 33.
  • 6  Abd Al-Rahman ibn Abdullah Al-Suhayli (1421 A.H.), Al-Raud Al-Unuf fe-Sharah Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Hisham, Dar Ihya Al-Turath Al-Arabi, Beirut, Lebanon, Vol. 2, Pg. 84.
  • 7  Muhammad ibn Jareer Al-Tabari (1387 A.H.), Tareekh Al-Tabari, Dar Al-Turath, Beirut, Lebanon, Vol. 2, Pg. 239.
  • 8  Abu Dawud Sulaiman ibn Al-Ash’ath (2009), Sunan Abi Dawud, Hadith: 4950, Dar Al-Salam, Riyadh, Saudi Arabia, Pg. 977.
  • 9  Shaikh Muzaffereddin (2012), Standard Dictionary of Muslim Names with 99 Names of Allah, Al-Minar Books, Claymont, Delaware, USA, Pg. 29.
  • 10  Muhammad ibn Jareer Al-Tabari (1387 A.H.), Tareekh Al-Tabari, Dar Al-Turath, Beirut, Lebanon, Vol. 2, Pg. 239.
  • 11  Safi Al-Rahman Al-Mubarakpuri (2010), Al-Raheeq Al-Makhtum, Dar ibn Hazam, Beirut, Lebanon, Pg. 67.
  • 12  Muhammad ibn Ishaq ibn Yasar Al-Madani (1978), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Ishaq, Dar Al-Fikr, Beirut, Lebanon, Pg. 33.
  • 13  Muhammad ibn Saad Al-Basri (1968), Tabqat Al-Kubra, Dar Sadir, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 88.
  • 14  Martin Lings (1985), Muhammad ﷺ: His Life based on the Earliest Sources, Sohail Academy, Lahore, Pakistan, Pg. 12.
  • 15  Muhammad ibn Ishaq ibn Yasar Al-Madani (1978), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Ishaq, Dar Al-Fikr, Beirut, Lebanon, Pg. 32.
  • 16  Husein Haykal (1976), The Life of Muhammad (Translated by Ismail Razi Al-Faruqi), Islamic Book Trust, Petaling Jaya, Malaysia, Pg. 39.
  • 17  पूर्व-इस्लामी अरबिया में कुरैश लोगों द्वारा पूजा जाने वाला देवता।. (Karen Armstrong (2002), Islam: A Shorty History, The Modern Library, New York, Pg. 11.)
  • 18  Muhammad ibn Ishaq ibn Yasar Al-Madani (1978), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Ishaq, Dar Al-Fikr, Beirut, Lebanon, Pg. 33.
  • 19  Holy Quran, Al-Maida (The Table spread) 5: 90
  • 20  Muhammad ibn Jareer Al-Tabari (1387 A.H.), Tareekh Al-Tabari, Dar Al-Turath, Beirut, Lebanon, Vol. 2, Pg. 241.
  • 21  Husein Haykal (1976), The Life of Muhammad ﷺ (Translated by Ismail Razi Al-Faruqi), Islamic Book Trust, Petaling Jaya, Malaysia, Pg. 39.
  • 22  Abd Al-Malik ibn Hisham (1955), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Hisham, Shirkah Maktabah wa Matba’ Mustafa Al-Babi, Egypt, Vol. 1, Pg. 153-154.
  • 23  Muhammad ibn Ishaq ibn Yasar Al-Madani (1978), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Ishaq, Dar Al-Fikr, Beirut, Lebanon, Pg. 36.
  • 24  Martin Lings (1985), Muhammad ﷺ; His Life based on the Earliest Sources, Sohail Academy, Lahore, Pakistan, Pg. 13.
  • 25  Cleromancy (क्लेरोमैंसी): नस्लों को फेंकने के माध्यम से भविष्यवाणी।
  • 26  Muhammad ibn Ishaq ibn Yasar Al-Madani (1978), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Ishaq, Dar Al-Fikr, Beirut, Lebanon, Pg. 36.
  • 27  Muhammad ibn Saad Al-Basri (1968), Tabqat Al-Kubra, Dar Sadir, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 88.
  • 28  Muhammad ibn Ishaq ibn Yasar Al-Madani (1978), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Ishaq, Dar Al-Fikr, Beirut, Lebanon, Pg. 39.
  • 29  Muhammad ibn Saad Al-Basri (1968), Tabqat Al-Kubra, Dar Sadir, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 89.
  • 30  Muhammad ibn Abd Al-Baqi ibn Yusuf Al-Zurqani (1996), Sharah Zurqani Ala Al-Mawahib Al-Laduniyyah bil Minh Al-Muhammadiyah, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 181.
  • 31  Husein Haykal (1976), The Life of Muhammad (Translated by Ismail Razi Al-Faruqi), Islamic Book Trust, Petaling Jaya, Malaysia, Pg. 44.
  • 32  Jalal Al-Din Al-Suyuti (2008), Al-Khasais Al-Kubra, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 71.
  • 33  Abul Fida Ismael ibn Kathir Al-Damishqi (1976), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Kathir, Dar Al-Ma’rifa lil Taba’a wal-Nashr wal-Tawzi, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 176.
  • 34  Muhammad ibn Ishaq ibn Yasar Al-Madani (1978), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Ishaq, Dar Al-Fikr, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 42.
  • 35  Ali ibn Ibrahim ibn Ahmed Al-Halabi (2013), Al-Seerah Al-Halabiyah, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 59.
  • 36  Ali ibn Ibrahim ibn Ahmed Al-Halabi (2013), Al-Seerah Al-Halabiyah, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 58.
  • 37  Abd Al-Rahman ibn Abdullah Al-Suhayli (1421 A.H.), Al-Raud Al-Unuf fe-Sharah Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Hisham, Dar Ihya Al-Turath Al-Arabi, Beirut, Lebanon, Vol. 2, Pg. 89.
  • 38  Husein Haykal (1976), The Life of Muhammad (Translated by Ismail Razi Al-Faruqi), Islamic Book Trust, Petaling Jaya, Malaysia, Pg. 46.
  • 39  Muhammad ibn Isḥaq ibn Yasar Al-Madani (1978), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Ishaq, Dar Al-Fikr, Beirut, Lebanon, Pg. 42.
  • 40  Abd Al-Malik Ibn Hisham (1955), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Hisham, Shirkah Maktabah wa Matba’ Mustafa Al-Babi, Egypt, Vol. 1, Pg. 156.
  • 41  Ibid.
  • 42  Muhammad ibn Ishaq ibn Yasar Al-Madani (1978), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Ishaq, Dar Al-Fikr, Beirut, Lebanon, Pg. 42.
  • 43  Muhammad ibn Saad Al-Basri (1968), Tabqat Al-Kubra, Dar Sadir, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 95.
  • 44  Husein Haykal (1976), The Life of Muhammad (Translated by Ismail Razi Al-Faruqi), Islamic Book Trust, Petaling Jaya, Malaysia, Pg. 46.
  • 45  Muhammad ibn Yusuf Al-Salihi Al-Shami (1993), Subul Al-Huda wal-Rashad fe Seerat Khair Al-Abad, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 331.
  • 46  Muhammad ibn Saad Al-Basri (1968), Tabqat Al-Kubra, Dar Sadir, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 99.
  • 47  Muhammad ibn Yusuf Al-Salihi Al-Shami (1993), Subul Al-Huda wal-Rashad fe Seerat Khair Al-Abad, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 331.
  • 48  Muhammad ibn Saad Al-Basri (1968), Tabqat Al-Kubra, Dar Sadir, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 99.
  • 49  Husein Haykal (1976), The Life of Muhammad (Translated by Ismail Razi Al-Faruqi), Islamic Book Trust, Petaling Jaya, Malaysia, Pg. 47.
  • 50  Ibid.

  • * This article has been translated from English to Hindi by Mr. Arshad Ali Jilani.

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